संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चले, इस पर स्पीकर ओम बिरला की अध्यक्षता में सभी दलों में सहमति तो बनी थी, लेकिन वह सहमति कारगर कब होगी? मंगलवार को भी दोनों सदनों में हंगामा हुआ, विपक्ष नारेबाजी करता हुआ अध्यक्ष के आसन तक भी पहुंचा, लिहाजा वह सर्वदलीय सहमति फर्जी लगी। विपक्ष ने संसद से बहिर्गमन तक किया, लेकिन लौट कर कार्यवाही में भी शिरकत की। ‘प्रश्नकाल’ के दौरान सांसदों ने सवाल भी पूछे। ‘शून्यकाल’ की भी संभावनाएं जगीं, लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि संसद की कार्यवाही बाधित क्यों की जाए? क्या ‘अदाणी कांड’ वाकई राष्ट्रीय और संसदीय मुद्दा है, जिस पर कांग्रेस और कुछ विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग कर रहे हैं? यदि अदाणी समूह ने कुछ गलत किया है, तो वह अमरीकी अदालत तय करेगी और दंडित करेगी। भारत में यह कांड ‘आपराधिक’ नहीं है और न ही ऐसा कोई न्यायिक निष्कर्ष सामने आया है। ‘अदाणी कांड’ पर ही विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन में दरारें उभरी हैं। ‘इंडिया’ में सर्वसम्मति कभी नहीं रही। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के आवास पर ‘इंडिया’ के सहयोगी दलों की जो बैठक हुई थी, उसमें तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भाग नहीं लिया। वे लगातार मानते रहे हैं कि संसद की कार्यवाही सुचारू चलनी चाहिए। अदाणी ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर संसद की कार्यवाही स्थगित करने को बाध्य होना पड़े। सपा नेता अखिलेश यादव के साथ 37 सांसद लोकसभा में हैं।
उनके लिए संभल क्षेत्र की सांप्रदायिक हिंसा और आम नागरिकों की मौत ‘नरसंहार’ से कम नहीं है। आखिर हरेक जामा मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर दफन के ऐतिहासिक अतीत को क्यों खोदा जाए? ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के 29 सांसद लोकसभा में हैं। उनके लिए बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, विपक्ष द्वारा शासित राज्य सरकारों के प्रति केंद्र सरकार का सौतेला और भेदभाव वाला रवैया, केंद्र द्वारा पूंजी का अपर्याप्त आवंटन आदि बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन पर संसद में बहस होनी चाहिए। तृणमूल के लिए ‘अदाणी कांड’ बेमानी, फिजूल है। सपा और तृणमूल इस राजनीति के भी पक्षधर नहीं हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और अदाणी परस्पर पूरक हैं। हालांकि कांग्रेस, ‘आप’, राजद, शिवसेना (उद्धव), द्रमुक और वामदलों के सांसदों ने संसद भवन के ‘मकर द्वार’ की सीढिय़ों पर विरोध-प्रदर्शन किया, लेकिन सपा और तृणमूल कांग्रेस उसमें शामिल नहीं हुए। सवाल यह है कि क्या संसद में ‘इंडिया’ गठबंधन विभाजित हो चुका है? क्या ‘इंडिया’ निर्णायक तौर पर खंड-खंड हो चुका है और अब मोदी सरकार के लिए कड़ी चुनौती नहीं है? चूंकि चुनावों के दौरान ‘इंडिया’ के कई घटक दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़े, लिहाजा सवाल है कि क्या अब ‘इंडिया’ भीतरी तौर पर भी एक बंटा हुआ गठबंधन है? संसद की कार्यवाही बेशकीमती है, क्योंकि वह देश के निर्वाचित सांसदों का सबसे बड़ा, महत्वपूर्ण सदन है। संसद में कानून बनाए जाते हैं तथा सांसद अपने क्षेत्र की समस्याओं को आवाज दे सकते हैं। संसद की कार्यवाही स्थगन से कितना पैसा बर्बाद होता है, अब यह उतना संवेदनशील मुद्दा नहीं रहा, क्योंकि इसकी चर्चा बार-बार की जाती है, लेकिन यह चिंतित स्थिति है कि 5 दिन में लोकसभा सिर्फ 69 मिनट और राज्यसभा 94 मिनट ही काम कर पाई। औसतन 4-5 फीसदी ही काम हो पाया। क्या संसद नारों और हंगामे का ही सदन बन गया है? बेशक भाजपा जब विपक्ष में थी, तो उसने भी कई-कई दिन तक संसद नहीं चलने दी थी। क्या अब कांग्रेस नेतृत्व वाला ‘इंडिया’ भी उसका प्रतिशोध लेगा? यह देशहित में नहीं है। यदि सार रूप में देखें, तो साल भर में 35-40 दिन भी संसद की कार्यवाही नहीं चल पाती है, जबकि अपेक्षाएं की जाती रही हैं कि कमोबेश 65-70 दिन संसद चले। संसद सुचारू रूप से चलनी चाहिए