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महाकुम्भ के दिव्य अवसर पर श्री अशोक पी हिन्दूजा अपने परिवार संग पहुंचे परमार्थ निकेतन शिविर, ईको फ्रेंडली और पर्यावरण सुरक्षित विकास पर हुई चर्चा

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प्रयागराज, 20 फरवरी 2025 : महाकुम्भ के अद्भुत और दिव्य अवसर पर आज परमार्थ निकेतन शिविर में श्री अशोक पी हिन्दूजा, उनकी धर्मपत्नी हर्षा हिन्दूजा, पुत्र शोम हिन्दूजा और परिवार के सदस्यों का अगमन हुआ।

हिन्दूजा परिवार के सदस्यों ने पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती से भेंट की। इस अवसर पर पर्यावरण के संरक्षण और सतत विकास के विषयों पर चर्चा करते हुये स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति हमेशा से पर्यावरण के संरक्षण और संतुलित जीवन का संदेश देती है। हमें इस परंपरा को जीवित रखने की आवश्यकता है। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जो प्रकृति से प्रेम करता है, वह सच्चे मायने में भगवान से प्रेम करता है, क्योंकि भगवान और प्रकृति दोनों का अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

आज परमार्थ निकेतन शिविर में एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। स्वामी जी और साध्वी जी के साथ पूरे हिन्दूजा परिवार ने स्वच्छता कर्मी भाई-बहनों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भोजन प्रसाद परोसा। स्वामी जी ने कहा कि भंडारा सेवा, मानवता की सेवा का भाव जागृत करती है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारी संस्कृति, परंपरा और हमारे महान पूर्वजों की धरोहर का प्रतीक है और इस धरोहर से युवा पीढ़ी को जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारे समाज के युवा वर्ग को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर, युवा अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ सकते हैं और इस धरती पर जीवन जीने के उच्चतम उद्देश्य को समझ सकते हैं। हमारी संस्कृति और परंपराएँ हमें पर्यावरण के साथ तालमेल में रहने का संदेश देती हैं।

महाकुम्भ का यह आयोजन भारतीय संस्कृति के संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा और युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन देने का सशक्त माध्यम बना है। आने वाले समय में इस प्रकार के आयोजनों की जरूरत और बढ़ेगी ताकि हम अपनी धरोहर को बचा सकें और आने वाली पीढ़ियों को यह सौगात दे सकें।

हिन्दूजा परिवार के सदस्य महाकुम्भ की धरती पर आकर गद्गद हुये। उन्होंने संगम में डुबकी लगायी और कहा कि अगर भारत व भारतीय संस्कृति के दर्शन करना है तो प्रत्येक व्यक्ति को संगम की धरती पर आना चाहिये।

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