आज की कथा मे बापू जी ने कहा कि समाज के उपेक्षित,दलित, शोषित, पिछड़ों को अपने दोनों हाथों से उपर उठाकर ह्रदय से गले लगाना एक प्रकार के ब्रह्मचर्य की पालना है।
सात बहनों के भगिरथ प्रयास द्वारा आयोजित कथा में आठ प्रकार के ब्रह्मचर्य को विष्णु घराने की दृष्टि से मानस ब्रह्म विचार के अंतर्गत मोरारी बापू ने कहा कि देह में ब्रह्मचर्य का पालन आठ प्रकार से किया जा सकता है जिसमें कर्ण से ब्रह्मचर्य,आंखों का ब्रह्मचर्य, वाणी का ब्रह्मचर्य, कर अर्थात हाथो का ब्रह्मचर्य,चरण का ब्रह्मचर्य, नासिका का ब्रह्मचर्य आदि।
बापू ने बताया कि राम चरित मानस में कुल इक्कीस अपराध और उनका प्रायश्चित बताया है। मानस ब्रह्म विचार के विषय को हल्का करने के लिए बापू ने अपने चिर-परिचित अंदाज में एक बालक के बारे बताया कि उसने मुझ से प्रश्न पूछा कि ऐसा कौन सा ट्री है जिसकी बहुत सी ब्रांच है पर फल नहीं है। बापू ने कहा मुझे तो खबर नहीं है आप ही बता दो । बच्चे ने कहा बैंक। बापू का कहना है जो गुरु मुस्कराहट न दे सके वो मोक्ष क्या दिलायेगा।
कथा को आगे बढ़ाते हुए बापू ने सनातनी आंखों के बारे में श्रोताओं को बताया कि राम, भरत, दशरथ की सनातनी आंखें हैं। कथा में कुंभ के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कथा का रसपान कराते हुए कहा कि प्रयागराज में कुंभ उपरांत जब सब ऋषि, साधू-संत, विद्वान अपने गंतव्य को वापस लोटने लगे तब भारद्वाज ऋषि ने याज्ञवल्क्य ऋषि से निवेदन कर कहा प्रभु कृपा करके थोड़े दिन यहां रुक कर मेरे मन में जो राम को जानने की जिज्ञासा है उसका निदान कर दें। मैं राम तत्व को जानना चाहता हूं। बापू ने याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा राम तत्व के बारे में वर्णन करते हुए जिसकी चर्चा जारी है कथा को विश्राम दिया।