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नागपंचमी: प्रकृति, सहअस्तित्व और श्रद्धा का संदेश – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

परमार्थ निकेतन से दिया गया आध्यात्मिक और पर्यावरणीय चेतना का संदेश

पौड़ी/परमार्थ निकेतन(ऋषिकेश),29 जुलाई 2025- परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने नागपंचमी के अवसर पर सभी श्रद्धालुओं को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यह पर्व केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सह-अस्तित्व, श्रद्धा और संरक्षण का संकल्प है।

स्वामी जी ने कहा कि नागपंचमी सनातन संस्कृति की उस चेतना का प्रतीक है, जो समस्त सृष्टि में ईश्वर का वास मानती है। भगवान शिव और विष्णु द्वारा नागों को दिव्य रूप में स्वीकार करना सह-अस्तित्व का स्पष्ट संदेश है।
उन्होंने कहा कि वर्षा ऋतु में सर्पों के प्राकृतिक आवास प्रभावित होते हैं, ऐसे में उनकी पूजा संरक्षण की भावना को दर्शाती है। नागदेवता पंचतत्वों, विशेषकर पृथ्वी और जल से गहराई से जुड़े हैं।

स्वामी जी ने योग परंपरा में नाग को ‘कुंडलिनी शक्ति’ का प्रतीक बताते हुए कहा कि नागपूजन आध्यात्मिक ऊर्जा के जागरण का माध्यम भी है।

जलवायु संकट के इस दौर में नागपंचमी जैसे पर्व हमें पर्यावरण के प्रति दया, करुणा और उत्तरदायित्व का संदेश देते हैं। यह पर्व हमें धर्म को केवल मंदिरों तक सीमित न रखकर, जीवमात्र में ईश्वर देखने की प्रेरणा देता है।

अंत में उन्होंने आह्वान किया कि हम केवल पूजा तक सीमित न रहें, बल्कि सभी जीवों के साथ संवेदनशील और सह-अस्तित्वमूलक व्यवहार करें।

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