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लोकतंत्र संकट में – चुनावी हिंसा में मासूम की मौत पर कोलकाता में विरोध और शोक

नदिया जिले के बारोचांदगढ़ में चुनाव के बाद हुई हिंसा में मारी गई चौथी कक्षा की छात्रा, 9 वर्षीय तमन्ना खातून की मौत

कोलकाता, 25 जून : जब पूरा देश 1975 की इमरजेंसी की 50वीं बरसी पर लोकतंत्र के इतिहास के काले अध्याय को याद कर रहा था, तब कोलकाता में नागरिक समाज ने एक और गहरी चोट को लेकर आवाज़ बुलंद की—नदिया जिले के बारोचांदगढ़ में चुनाव के बाद हुई हिंसा में मारी गई चौथी कक्षा की छात्रा, 9 वर्षीय तमन्ना खातून की मौत।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) और पश्चिम बंगाल लोकतांत्रिक नागरिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में वेलिंगटन स्क्वायर पर एक शोकसभा और विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, छात्र नेता, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिकों की उपस्थिति रही। सभा का माहौल भावुक और प्रतिबद्धता से भरा हुआ था—एक मासूम की हत्या ने लोकतंत्र की बुनियादों पर सवाल खड़े कर दिए।

प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन ने कहा, “यह समय हमारे लोकतांत्रिक विवेक की परीक्षा का है।”

लोक मंच के संयोजक शुभजीत दत्तगुप्ता ने कहा, “तमन्ना की मौत कोई अकेली घटना नहीं है—यह उस राज्य की पहचान है जहाँ सत्ता की हवस, बच्चों की सुरक्षा से बड़ी हो चुकी है। एक बच्चे की जान कोई राजनीतिक सौदा नहीं हो सकती।”

छात्र नेता आदित्य दत्त ने 1975 की सेंसरशिप की याद दिलाते हुए कहा, “तब अखबारों की आवाज़ बंद की गई थी, आज बच्चों की साँसें छीनी जा रही हैं। आज की सत्ता डर को छिपाती नहीं, बल्कि दिखाकर चलती है।”

सामाजिक कार्यकर्ता स्वस्तिक शर्मा ने कहा, “अगर राजनीति बच्चों के खून की कीमत पर खड़ी है, तो छात्र समाज चुप नहीं रहेगा। हमारी लड़ाई सड़क पर ही नहीं, हर मोर्चे पर जारी रहेगी।”

PUCL की ओर से अम्लान भट्टाचार्य ने स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग करते हुए कहा, “आज भले ही MISA न हो, लेकिन दमन के नए चेहरे सामने हैं—पुलिसिया अत्याचार, प्रशासनिक चुप्पी और न्याय का अभाव। तमन्ना को न्याय मिलना ही चाहिए, वह भी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के ज़रिए।”

सभा का समापन मौन श्रद्धांजलि और मोमबत्ती जलाकर किया गया। लेकिन इस मौन के भीतर गूंज रही थी एक बुलंद आवाज़—कि लोकतंत्र केवल एक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है, खासकर तब जब सबसे कमजोर—बच्चे—उसकी कीमत चुका रहे हों।

इस विरोध में केवल अतीत की याद नहीं थी, बल्कि एक भविष्य के लिए प्रतिज्ञा भी थी: कि हम भूलेंगे नहीं, चुप नहीं रहेंगे, और तमन्ना के नाम पर न्याय की माँग करेंगे।

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