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बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और महिला हिंसा के खिलाफ पश्चिम बंगाल में नबन्ना चलो आंदोलन,नागरिक मंचों की एकजुटता


कोलकाता, 28 जून : पश्चिम बंगाल में एक नया नागरिक और राजनीतिक आंदोलन आकार ले रहा है। पश्चिम बंगाल वंचित नौकरीप्रार्थी, नौकरीपेशा और नौकरी से वंचित लोगों के एकजुट मंच के आह्वान पर  “नबन्ना चलो” अभियान आयोजित किया जा रहा है। इस आंदोलन को संघर्षशील संयुक्त मंच और पश्चिम बंगाल लोकतांत्रिक नागरिक मंच का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। इन संगठनों का कहना है कि यह केवल एक मात्र आंदोलन नहीं, बल्कि शासन की जवाबदेही, पारदर्शिता और सामाजिक न्याय की मांग के साथ जुड़ा एक व्यापक जन आंदोलन।

आंदोलनकारियों का आरोप है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में करीब छह लाख पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं, जबकि योग्य उम्मीदवार बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। शिक्षा मंत्रालय ने भले ही उच्च शिक्षा संस्थानों में डेढ़ लाख पदों पर नियुक्ति की घोषणा की है, लेकिन अब तक इसकी कोई ठोस प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। इसके साथ ही SSC 2016 पैनल के तहत योग्य लेकिन बर्खास्त किए गए उम्मीदवारों की बहाली, OMR शीट की सार्वजनिकता और भ्रष्टाचार के कारण नौकरी से वंचित उम्मीदवारों के लिए उचित पुनर्वास की मांग भी आंदोलन का अहम हिस्सा है।

इस आंदोलन में सरकारी कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार बकाया महंगाई भत्ता (DA) का भुगतान भी एक केंद्रीय मांग है। आंदोलनकारियों का कहना है कि लंबे समय से DA न मिलने के कारण सरकारी कर्मचारियों का जीवनस्तर प्रभावित हुआ है। इसके अतिरिक्त महिला सुरक्षा भी आंदोलन का एक बड़ा विषय है। आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की एक छात्रा के साथ हुए बलात्कार और हत्या तथा साउथ कलतला लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार जैसे घटनाओं ने राज्य को झकझोर दिया है। आंदोलनकारियों का कहना है कि इन मामलों में त्वरित और कठोर न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

OBC वर्गीकरण में हालिया बदलाव के कारण कई उम्मीदवार वंचित हो गए हैं। आंदोलनकारी संगठनों ने इन प्रार्थियों के संवैधानिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की भी मांग की है। उनका कहना है कि शासन की नीतिगत अस्पष्टতা और पक्षपातपूर्ण निर्णयों से सामाजिक न्याय की अवधारणा ही खतरे में पड़ रही है।

पश्चिम बंगाल लोकतांत्रिक नागरिक मंच के संयोजक शुभजीत दत्तगुप्ता ने कहा कि PSC और SSC जैसी नियुक्ति एजेंसियों को पूरी तरह से स्वायत्त बनाया जाना चाहिए ताकि वे राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से काम कर सकें। उन्होंने कहा, “यह आंदोलन सिर्फ नौकरी या वेतन की नहीं, बल्कि शासन की नैतिकता और जवाबदेही की मांग है। जब राज्य अन्याय, भ्रष्टाचार और महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर मौन साधे रखता है, तब नागरिकों का सड़क पर उतरना अनिवार्य हो जाता है।”

आंदोलन के प्रमुख संयोजक आशिष खामरई ने कहा कि जब तक मुख्यमंत्री खुद आंदोलनकारियों के साथ बैठकर समाधान नहीं निकालते, तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी। प्रवक्ता अभिषेक मंडल ने कहा कि शांति और धैर्य से चल रहे आंदोलन को सरकार लगातार नजरअंदाज़ कर रही है, इसलिए अब व्यापक प्रतिरोध ही एकमात्र विकल्प है। संघर्षशील संयुक्त मंच के प्रतिनिधि स्नेहाशिष भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार न तो शिक्षा क्षेत्र को प्राथमिकता दे रही है, न ही महिला सुरक्षा या रोजगार के सवालों पर संवेदनशील है।

आंदोलन के एक अन्य वरिष्ठ नेता शुभजीत भौमिक ने कहा कि यह आंदोलन केवल मांगों की सूची नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और सशक्त समाज के निर्माण की लड़ाई है। उन्होंने कहा, “यदि राज्य अपने कर्तव्यों से विमुख होता है, तो नागरिकों को आगे आकर सवाल करना ही होगा।” आंदोलन के नेताओं ने यह भी कहा कि जो संगठन और नागरिक अभी तक इस आंदोलन से नहीं जुड़े हैं, उन्हें 28 जुलाई को नबन्ना के समक्ष होने जा रहे इस जन-प्रदर्शन में अवश्य शामिल होना चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन राज्य की राजनीति और नागरिक चेतना में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है। जनसहभागिता और संगठित दबाव से अगर सरकार पर जवाबदेही तय होती है, तो यह आंदोलन भविष्य में बंगाल के सामाजिक आंदोलन इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन जाएगा।

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